सोभित कर नवनीत लिए [Shobhit kar navneet liye] (हिंदी काव्य) IGNOU MHD - 01 Free Solved Assignment

सोभित कर नवनीत लिए [Shobhit kar navneet liye] (हिंदी काव्य) 
IGNOU MHD - 01 Free Solved Assignment

निम्नलिखित अंशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

सोभित कर नवनीत लिए।

घुटुरूनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए।।

चारू कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए।

लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधहिं पिए।।

कठुला कंठ बज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए।

धन्य सूर एको पल इहिं सुख का सत कल्प जिए।।

प्रसंग:

प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी काव्य -1 के खण्ड - 3 के बाल-लीला से अवतरित हैं। इसके रचयिता वात्सल्य रस के सम्राट एवंम कृष्ण भक्ति शाखा के निर्धन साहित्यकार सूरदास जी हैं। सूरदास ने 'सूरसागर' की रचना कर हिंदी साहित्य को अमूल्य अवदान दिया है। सूरदास जी हिंदी साहित्य में सूर्य का स्थान रखते हैं।

संदर्भ:

सूरदास ने इन पंक्तियों में कृष्ण के बाल सुलभ भावों का मार्मिक चित्रण किया हैं।

व्याख्या:

सूरदास वात्सल्य रस के अप्रतिम कवि माने जाते हैं। बाल मनोदशाओं और बाल क्रीड़ाओं के सूक्ष्म से सूक्ष्म पहलू को सूरदास जी ने काव्य में दर्शाया हैं। सूरदास जी ने श्रीकृष्ण के बाल - लीला का वर्णन करते हुए कहते हैं कि श्रीकृष्ण बाल - क्रीड़ाओ में कितने सुशोभित हो रहे हैं। दोनों हाथों में मक्खन लिए हुए  अतिशोभित हो रहे हैं। घुटनों के बल चलते समय,  घुटनों में मिट्टी और मुँह में मक्खन लगाये हैं। और बाल - गोपाल के लाल - लाल गाल तथा माथे पर तिलक देखकर कितना सुंदर दृश्य लगता है। श्रीकृष्ण के बाल लटके हुए हैं, जैसे लगता हैं कि भौंरे मधु का रस पीने के लिए लटके हुए हैं।

सूरदास जी कहते हैं कि जो खुशी, आनंद श्रीकृष्ण के साथ ब्रज में रहने में है। वो खुशी वो आनंद तनिक भी एक राजा बनकर नहीं है।

सूरदास जी कहते हैं कि मैं धन्य हूँ जो मैं श्रीकृष्ण के भक्ति में एक पल के लिए जीया। उतनी खुशी और सुख तो हजारों सालों तक जीने से भी प्राप्त नहीं होगी।

भाषा शैली:

सूरदास के काव्य में ब्रजभाषा का अधिक्य है तथा इसमें तत्सम, तद्भव, विदेशी तथा मुहावरें समाहित है।

अलंकार:

अनुप्रास और रूपक अलंकारो का सुंदर और सटिक प्रयोग हुआ है।

विशेष:

(i) बालक कृष्ण के मनोहारी क्रियाओं में बाल मनोविज्ञान का जो चित्र अंकित हुआ है, वह अनुपम हैं।

(ii) कृष्ण के बाल - लीला का चित्रण हो या रासलीला का, सर्वत्र प्रेम का ही साम्राज्य हैं।

(iii) सूरदास जी ने बाल चेष्टाओं का बारीकी से चित्रण किया है।

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