शमशेर बहादुर सिंह की कविताओं के महत्वपूर्ण पक्षों पर विचार [shamasher bahaadur sinh kee kavitaon ke mahatvapoorn pakshon par vichaar](आधुनिक हिंदी काव्य) IGNOU MHD 02 Free Solved Assignment

IGNOU MHD - 02: आधुनिक हिंदी काव्य,
शमशेर बहादुर सिंह की कविताओं के महत्वपूर्ण पक्षों पर विचार 
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(4) शमशेर बहादुर सिंह की कविताओं के महत्वपूर्ण पक्षों पर विचार कीजिए। (16)

उत्तर:- शमशेर बहादुर सिंह की काव्य के महत्वपूर्ण पक्ष:-

(i) लिविंग प्रिंसिपल की खोज:-

शमशेर बहादुर सिंह के लिए कोई रचनाकार या कलाकार इसलिए आर्कषक होता हैं क्योंकि वह कोई ऐसी चीज पैदा कर रहा होता हैं, जिससे हम अपने अनुभूतियों की तुलना कर रहे होते हैं। शमशेर का कहना हैं- चूंकि मेरी दिलचस्पी शैली और प्रकार में और तकनीक में रही हैं। अलग-अलग कवियों की, रचनाकारों की, आर्टिस्टों की जो शैलियाॅं हैं, उनमें भी रही हैं। शमशेर रचनाकारों को विश्व दृष्टि या विचारधारा की जगह "लिविंग प्रिंसिपल" को खोजने  समझने की जरूरत बताते हैं।

शमशेर के अनुसार मार्क्सवाद से नजरिया बेहतर वैज्ञानिक और विश्वसनीय होने के साथ-साथ दृष्टि में विस्तार मिलता हैं, और विश्व-बंधुत्व का अहसास भी होता हैं। मार्क्सवाद से रचनाकार को दिशा मिलती है, और उसकी वेदना में धार आ पाती हैं, लेकिन इसी मार्क्सवाद से शमशेर का रिश्ता हिंदी के आलोचकों के लिए खासा सिरदर्द बना रहा हैं। शमशेर के अनुसार एक प्रेमी कलाकार, एक मध्यवर्गीय भावुक नागरिक का, जो मार्क्सवाद से रोशनी भी ले रहा है और सांस्कृतिक और धार्मिक विविध परंपराओं में अपनी नैसर्गिक शक्ति और उर्जा के स्रोत भी तालाश रहा हैं, जिसे सभी देशों और साहित्यों से प्यार, प्रेम की भावुकता, पूरी मनुष्य जाति से प्रेम, युद्ध से नफरत और शांति की समस्याओं से दिलचस्पी और फिर इन सभी सूत्रों के साथ इन्सान से जुड़ने की कोशिश। इनमें सबसे अधिक  दिलचस्प हैं "प्रेम" की भावुकता को गौरव का स्थान दिया जाना, जबकि मार्क्सवादी विचारक भावुक होने को वे कमजोर होने की निशानी मानते हैं। शमशेर के अनुसार न प्रेम सीमित हैं, न ही उनकी भावुकता का दायरा तंग हैं। सामाजिक संबंधों में विद्यमान भावात्मक तत्व को मनुष्य ने 'प्रेम' का नाम दिया हैं। मार्क्सवादियों का विरोध पूंजीवाद से दरअसल इस वजह से होना चाहिए कि वह तमाम  सामाजिक संबंधों को आर्थिक संबंधों में और उन्हें भी बाजार द्वारा तय किए गए संबंधो में बदलते हुए इस भावात्मक तत्व को जला डालता हैं।

भावना जिसे जबर्दस्ती ज़मीन के अंदर गाड़ दिया गया हैं, तब विस्फोट के साथ बाहर आती हैं, तो समाज का ढांचा  चकनाचूर हो जाता हैं। इसलिए प्रेम की भावुकता उन्हें कमजोर करने की जगह इन्सानों के साथ सही रिश्ते  कायम करने में मदद करती हैं।

(ii) मार्क्सवाद : व्यक्तित्व निर्माण की आधारभूत सामग्री के रूप में:-

शमशेर कहना चाहते हैं कि मार्क्सवाद को मैं सामाजिक, राजनैतिक पहलुओ से नहीं देखता, बल्कि हमारे युग में वह मानव के गहनतम चितनों से जुड़ा हैं। अतः मार्क्सवाद उनके लिए राजनीतिक दृष्टि मात्र न होकर उनके रचनाकार व्यक्तित्व के निर्माण की आधारभूत सामग्री हैं। दूसरा  सप्तक के अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा है कि यह कलाकार पर निर्भर करता है कि वह अपने चारो ओर बिखरे पड़े सुंदरता के खजाने का कितना इस्तेमाल कर सकता हैं, लेकिन कलाकार में यह क्षमता आए, इसके लिए जरूरी है कि वह अपने चारों तरफ की जिंदगी में दिलचस्पी ले, उसे ठीक-ठाक यानी वैज्ञानिक आधार पर समझे। शमशेर के लिए यह वैज्ञानिक आधार मार्क्सवाद हैं। मार्क्सवाद उन्हें अपनी अनुभूतियों और अनुभवों को सुलझाने में, उन्हें स्पष्ट करने में मदद करता हैं, जिससे उनकी 'कला-चेतना' जग पाती हैं, अर्थात शमशेर कहते हैं कि इस तरह अपनी कला-चेतना को जगाना और उसकी मदद से जीवन की सच्चाई और सौंदर्य को अपनी कला में सजीव से सजीव रूप देना, इसी को मैं साधना समझता हूँ और इसी में कलाकार का संघर्ष छिपा हुआ देखता हूँ। उनमें मनुष्य, समाज, राष्ट्र और उनके भविष्य को लेकर गहरी चिंता का भाव हैं। वे तमाम मानव समाज के बारे में, उसके सुख-दुख के बारे में, सामान्यजन के बारे में, निर्धन जनता के बारे में, मध्यवर्ग की आर्थिक बदहाली के बारे में उन्हें चिंताएँ थीं। शमशेर में वैचारिक स्तर पर एक विरोधाभास बना रहा - व्यक्तित्व की प्रखर चेतना के साथ उसमें सामाजिक दायित्व का आग्रह भी हैं। 

डॉं राम विलास शर्मा कहते है कि शमशेर की उलझनों का एक कारण यह है "कि वे अपने रीतिवादी रुमानी सौंदर्य बोध से अपने मार्क्सवादी विवेक की संगति नहीं बिठा  पाए"।

(iii) विवेक और भावबोध का द्वंद :-

विवेक यानी मार्क्सवाद और भाव-बोध के बीच अंतर खुद शमशेर महसूस करते थे। 'दूसरा सप्तक' के वक्तव्य में शमशेर 'समाज सत्य' को आग्रहपूर्वक 'मार्क्सवाद' का पर्याय घोषित करना जरूरी समझते हैं। शमशेर के अनुसार अपने भावनाओं में, अपनी प्रेरणाओं में, अपने संस्कारों में, 'समाज सत्य' के मर्म को ढालना और उसमें अपने को पाना उतना कठिन नहीं हैं, जितना वह जिसे वे मार्क्सवाद के नाम से अभिहित करते हैं। दूसरे शब्दों में शमशेर धीरे-धीरे मार्क्सवाद के बंद दायरे से बाहर निकलते हैं, उससे मुक्ति प्राप्त करते हैं। मार्क्सवाद का छूटता हुआ दामन उनके लिए मोह भंग का रूप नहीं लेता, बल्कि केंचुल छोड़कर चुपचाप आगे बढ़ जाने की अनुभूति देता हैं, और शमशेर यह भी कहते हैं, "एक लेखक के रूप में मार्क्सवादी होना जरूरी है, सैद्धांतिक स्तर पर नहीं बल्कि व्यावहारिक स्तर पर भी, उन्होंने मार्क्सवाद को विचारधारा मात्र के रूप में ग्रहण नहीं किया, बल्कि वह उसे मानव के गहनतम चिंतनों से जुड़ा हुआ मानकर चलते रहे। मार्क्सवाद का लक्ष्य उसका स्वप्न है-- संपूर्ण मनुष्य। मार्क्सवाद का विलक्षण सर्जनात्मक पक्ष यह नहीं है कि वह वर्ग संघर्ष का आह्वान करता हैं बल्कि यह है कि वह वर्ग संघर्ष के दौरान अपने आपको पहचान पाने, उद्‌घाटित करने, स्वयं को प्राप्त कर पाने को मनुष्य के ऐतिहासिक लक्ष्य की चेतना प्रदान करता हैंं। शमशेर कहते हैं- 'मार्क्सवाद के मूल में व्यक्ति की जो सकारात्मक आजादी का पक्ष छिपा है, उसे ठीक से समझे बिना मनुष्य की बराबरी के समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। शमशेर को एक सच्चे मार्क्सवादी की तरह उनका पूर्वाभास था, परन्तु जनता कहीं न कहीं विचारों की मुक्ति चाहती हैं, जीवन में सकारात्मक, संवेदनात्मक आजादी की माॅंग  करती हैं। शमशेर ने जनता के अंतर विचारों को ही नहीं, जीवन में संवेदनात्मक आजादी की भूख को भी बिल्कुल  सही पहचाना था। शमशेर चाहते हैं कि भावबोध या सौंदर्यबोध के स्तर पर विचारधारात्मक जड़ता का बने रहना। शमशेर जैसे कलाकार ने मार्क्सवाद के मूल स्वप्न को पहचान लिया था। शमशेर के लिए मार्क्सवाद एक ज्यादा बड़ी जरुरत बनकर आया था। वह चारों तरफ बिखरे पड़े सौंदर्य की, जो हमें अपनी जकड़ी जिंदगी में उपयोगी नहीं जान पड़ता, सार्थकता बताता था--उनके लिए, उन्ही के शब्दों में कहें तो, मार्क्सवाद "सघनतम की ऑंख" बनकर उभरा। दूसरे शब्दों में उसने उन्हें ज्यादा व्यापक और गहन अर्थ में सौन्दर्यवादी बनाया।

(iv) उर्दू कविता (गजल) और शमशेर:-

सौंदर्यवाद और रीतिवाद में गहरा रिश्ता हैं। शमशेर पर उर्दू की रीतिवादी कविता का गहरा असर था। शमशेर में शब्दों के माधुर्यपूर्ण प्रकारात्मक न्यारा तथा सुरुचिपूर्णता के प्रति उनके आग्रह को उर्दू गजलियत से जोड़ते हुए इसे भी उनके रीतिवादी रुझान का सबूत माना गया हैं। शमशेर लिखते हैं- "गजल मेरी भावुकता और आंतरिक अभावों की, अपने तौर पर भली बुरी एक मौन साथी हैं।" शमशेर के अनुसार गजल किसी अकेले खामोश गुल के बिखरते हुए रंग में विभोर होकर जीवन सुख की बहार और खिंजा के दर्द से परिपूर्ण हो उठना बस यही संकेत तो गजल का एक शेर हैं।

कवि की निगाह में शायरी की खूबी यह है- कुछ समझ-बूझकर बहकाना और बहक जाना- यही तो शांयरी हैं। इसमें बहकाने और बहक जाने को गुण बताना जितना अर्थपूर्ण है, उतना ही उसके आगे समझ बूझकर लगाना सार्थक हैं। शमशेर की निगाह में गजल की परंपरा का महत्वपूर्ण पक्ष हैं- शब्द संगठन और लोच, मुहावराबंदी और सफाई का महत्व बढ़ाकर किलष्टता से खुद को बचाना। शमशेर का उर्दू भाषा और उर्दू कविता में विस्तार से विचार करने का कारण उनके कवि संस्कार के निर्माण में काफी योगदान हैं। शमशेर जानते हैं कि उर्दू में रीतिवाद के अलावा बहुत कुछ है, जो रीतिवाद उन्हें मोहता हैं। इकबाल में शमशेर को "प्रेम-साधना" और "आत्म-विश्वास" तथा "आत्म-ज्ञान" का संदेश सुनाई पड़ता हैं। शमशेर पर उर्दू कविता इस कारण से असर डालती हैं कि उसमें कला का अनुप्राणित करने वाला 'मनुष्य का निजत्व' स्वाभाविक रुप से मिलता है, और उन्हें गालिब अपनी व्यापकता के केन्द्र में से एक बड़ा हीरों नजर आता हैं, जिसमें आज के आधुनिक साहित्यकार का पूरी तड़प और वेदना के बीच एक तटस्थ यथार्थवादी दृष्टि हैं।

(V) आत्म सत्य बनाम समाज सत्य:-

शमशेर 'उर्दू कविता' में कहते हैं कि आज हमारे साहित्य का सवाल हो गया है, इसलिए हमारे काव्य की सृष्टि भी बंधे हुए तंग दायरों में नहीं बढ़ सकती। सच्चे कवि की कसौटी यह है कि वह संस्कृतियों की ठोस अनुभूति के द्वारा हमारे व्यापक जीवन के सत्य सौन्दर्य से हमारा परिचय कराने में सशक्त हैं या नहीं। कवि चाहते है कि उनकी कविता का स्पर्श हमारे भूत और भविष्य को नए अर्थ से गौरवान्वित करे और हमारे वर्तमान की आधारभूत प्रेरणाओं और लक्ष्यों को और स्पष्ट करते रहे। उन्होंने लिखा है कि कवि का मुख्य धर्म हैं- भावनाओं के परिष्कार के द्वारा अनुभूतियों को गहरा करना और कुछ इस तरह अर्थपूर्ण बनाना की घोर से घोर एकांकी परिस्थिति में भी कवि को तो शांति मिले। शमशेर के अनुसार आत्म-सत्य का अन्वेषण सच्चा कलाकार अपनी अनुभूतियों में नहीं, उनके मूलों में करता है, उन मूलों में जो उसके समाज और संस्कृति की परंपरा में बहुत गहरे चले गए हैं। इस तरह कलाकार के आत्म-सत्य के बाहर वह समाज सत्य नहीं है, समाज सत्य, कलाकार के आत्म सत्य और कलात्मक सत्य में गहराई में धंसे मूलों में आत्म सत्य का अन्वेषण करके समाज सत्य के मर्म को उद्‌घाटित करता हैं। शमशेर का मानना है कि 'कवि जिन सत्यों को उद्‌घाटित करता है, उनका वह अपनी अनुभूतियों में साक्षी होता हैंं। कला की अभिव्यक्ति व्यक्ति और समाज की आशाओं-आकांक्षो और क्षणिक समर्थताओं का एक सजीव और गतिशील दर्पण हैं। शमशेर के लिए यथार्थ वह सब कुछ है, जो मनुष्य के जीवन में घटित और अनुभूत होता हैं। मनुष्य के स्वप्न, योजनायें, उसके समस्त कार्यकलाप, संघर्ष, आंदोलन, उसका सारा व्यक्तिगत और सामूहिक इतिहास यथार्थ हैं। मनुष्य की कल्पनाएँ भी उसके जीवन का यथार्थ हैंं।

(vi) सामाजिकता और यथार्थवाद :-

शमशेर कला के क्षेत्र में यथार्थ और अयथार्थ के झगड़े को वे व्यर्थ मानते थे। वे कहते हैं कि महत्वपूर्ण सिर्फ यह है कि कलाकृति का मूल्य इस पर निर्भर करता है कि वह किसी अनुभूति को कितनी सच्चाई और सफलता से व्यक्त करती हैं। कलाकार समझते हैं कि कलाकार जिस चीज  को व्यक्त करना चाहता हैं। वह रूप रेखा नहीं बल्कि वह कलात्मक रूप है तो कलाकार स्वयं अपने पर्दे में महसूस करता हैं। इस तरह उनकी सफलता-असफलता और उनके प्रयोगों की सार्थकता की परीक्षा करते हुए शमशेर स्वयं अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति के लिए प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थें, क्योंकि कला जितना प्रतिभा का मामला है कहीं उससे ज्यादा अभ्यास या 'मश्क' का भी हैं। शमशेर सामाजिक तौर पर अपने ढंग की कविता लिखना जारी रखते हुए अपने आत्माव्यक्ति वाले अंजाद के महत्व पर जोर देते हैं।

(vii) कला और सामाजिक दायित्व :-

कला या कविता के दायित्व और उसके कार्य क्षेत्र को लेकर चलने वाले वाद-विवाद में शमशेर शुरू से अंत तक इस मत के बने रहे हैं कि जनता के प्रति जो दायित्व है, उसे कवि को नहीं भूलना चाहिए, लेकिन जनता के प्रति दायित्व के लिए कठोरता से कार्यक्रम नहीं बनाया जा  सकता। अतः वे यह मानते रहे कि एक बड़ा रचनाकार जनता की ही सेवा करता हैं। उनके लिए अच्छी कविता वहीं थी, जो विचार ही नहीं, कविता का आनंद, रस और गहरी काव्यानुभूति भी प्रदान करे। 

शमशेर लिखते हैं, नाना प्रकार की परिस्थितियॉं तथा अभिव्यक्ति की अनिवार्यता पर विशेष जोर दिया जाए, जो बिखरे पड़े सौंदर्य से बेखबर हमारे मन को किसी पक्ष की तरफ मोड़ने में सफल होते हैं। काव्य कला समेत जीवन के सारे व्यापार यह लीला हैं। यह लीला मनुष्य के सामाजिक जीवन के उत्कर्ष के लिए निरंतर संघर्ष की ही लीला हैं।

सारांश :-

शमशेर आधुनिक दौर के सबसे जटिल कवि माने जाते हैं। शमशेर के लिए मार्क्सवाद जीवन व्यवहार, व्यक्तित्व निर्माण की आधारभूत सामग्री हैं। मार्क्सवाद और भाव-बोध को लेकर शमशेर में द्वंद चलता रहा हैं। भावुकता को वे खारिज नहीं करते, उसे गौरव प्रदान करते हैं। मनुष्य की कल्पनाऍं भी उसके मानसिक जीवन का यथार्थ हैं। अंत में कह सकते हैं कि शमशेर साहित्य और कला की दुनिया में सिद्धहस्त कलाकार हैं।
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